America Turki Missiles Deal: अमेरिका और तुर्की के बीच हाल ही में हुई एक बड़ी मिसाइल डील ने भारत के रणनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर दी है। अमेरिका ने तुर्की को करीब 304 मिलियन डॉलर की एडवांस मिसाइलें देने की मंजूरी दी है। हालांकि यह डील अमेरिकी रणनीतिक सहयोग का हिस्सा बताई जा रही है, लेकिन भारत के लिए यह डील एक सावधान करने वाली घंटी है।
America Turki Missiles Deal: तुर्की-पाकिस्तान की नजदीकी और भारत की चिंताएं
तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते कोई राज़ नहीं हैं। तुर्की ने बार-बार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया है। ऐसे में America Turki Missiles Deal के बाद भारत के लिए यह डर वाजिब है कि यह टेक्नोलॉजी कहीं पाकिस्तान के हाथ न लग जाए।
तुर्की पहले ही पाकिस्तान को ड्रोन और AI आधारित सैन्य तकनीक में सहायता दे चुका है। अगर अब एडवांस मिसाइल सिस्टम भी साझा हुआ, तो यह सीधे-सीधे भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
America Turki Missiles Deal: इस डील में क्या ख़ास है?
इस डील में तुर्की को जो AMRAAM मिसाइल सिस्टम मिलेंगे, वे लंबी दूरी के एयर-टू-एयर अटैक के लिए माने जाते हैं। इनका इस्तेमाल फाइटर जेट्स से किया जाता है और ये दुश्मन के विमानों को काफी दूर से ही निशाना बना सकते हैं।
अगर इस तकनीक को तुर्की पाकिस्तान को हस्तांतरित करता है — भले ही ऑफिशियली ना भी हो — तो इससे भारतीय वायुसीमा पर बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
America Turki Missiles Deal: भारत को क्या कदम उठाने चाहिए?
- राजनयिक स्तर पर आपत्ति दर्ज करें: भारत को अमेरिका के सामने इस डील पर अपनी चिंताओं को मजबूती से रखना चाहिए।
अपनी सैन्य तकनीक में आत्मनिर्भरता बढ़ानी होगी, खासकर मिसाइल रक्षा प्रणाली में।
- तुर्की-पाक संबंधों पर कूटनीतिक दबाव बनाना ज़रूरी है ताकि यह तकनीक गलत हाथों में न जाए।

अमेरिका का दोहरा रवैया?
अमेरिका एक ओर भारत को रणनीतिक साझेदार कहता है, QUAD जैसी पहल करता है, लेकिन दूसरी ओर ऐसे देशों को हथियार देता है जो भारत के विरोधी हैं। इससे भारत-अमेरिका संबंधों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
निष्कर्ष
America Turki Misail Deal न सिर्फ एक सैन्य सौदा है, बल्कि यह भारत के लिए एक भविष्य की चुनौती भी बन सकता है। ऐसे समय में जब भारत तीन ओर से सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है — चीन, पाकिस्तान और आतंकवाद — तब इस डील की संवेदनशीलता को नजरअंदाज करना गलत होगा।
भारत को न सिर्फ अपनी तकनीकी क्षमता को बढ़ाना होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को भी और मज़बूती से रखना होगा।